GUWAHATISPECIAL

शिवरात्री पर विशेष- गुवाहाटी का उमानंद मंदिर

गुवाहाटी

यूं तो पूरे वर्ष शिव की पूजा होती है, लेकिन श्रावण महीने में जहां महीने भर भगवान शिव का अभिषेक होता है वहीं फाल्गुन महीने में आयोजित होने वाले शिवरात्री को शिव स्वरूप “पती” और पार्वती स्वरुप “पत्नी”  की चाहत का पर्व मानते हैं. उस दिन ख़ास उस मंदिर की महत्व बढ़ जाता है जहां शिव और पार्वती एक साथ होते हैं. ऐसा ही एक मंदिर है “उमानंद” जो गुवाहाटी के पास ब्रहमपुत्र के बीचो बीच एक छोटे से द्वीप की चोटी पर स्थिति है. शिवरात्री के दिन यहाँ हज़ारों के संख्या में श्रद्धालु आते हैं और पूजा अर्चना करते है.

कैसे पहुंचे मंदिर

मंदिर तक पहुँचने के लिए सब से पहले आप को 15 से 20 मिनट तक यात्रा नौका से तय करनी होगी. ब्रहमपुत्र के किनारे स्थित किसी भी घाट से नौकाएं आसानी से मिल जाती हैं. टापू तक पहुँचने के बाद सीढियां चढ़ने के बाद आप पहुँच जाएंगे उमानंद मंदिर के परिसर में. पहाड़ी के पास नौका से उतरते ही आप को एक प्रवेश द्वार मिलेगा. द्वार के दोनों ओर बैठे हैं नंदी. परवेश द्वार से चोटी तक पहुँचने के लिए सीढियां बनी हुई हैं. सीढियां चढ़ते हुए जब आप आधी ऊंचाई पार कर लेंगे तब आप को पूजा सामग्री खरीदने के लिए कुछ दुकाने मिलेंगी और एक छोटा सा होटल जहां अक्सर लोग सुस्ताने और पानी पीने के बाद आगे बढ़ते हैं. फिर कुछ सीढियां चढ़ने के बाद आप को उजले रंग का उमानंद मंदिर का परवेश द्वार मिल जाएगा जहां प्रवेश कर आप मंदिर परिसर में पहुँच जाएंगे.

पूजा का विधीविधान

मंदिर परिसर में दाखिल होने पर सब से पहले टिन के छत वाला एक छोटा सा झोंपड़ी नुमा गणेश मंदिर मिलता है. भक्त पहले वहाँ माथा टेकने के बाद ही उमानंद मंदिर की ओर बढ़ते हैं. उमानंद मंदिर में दाखिल होते ही मुख्य गर्भ ग्रह से सटे एक बड़े हॉल के बीचों बीच विराजमान हैं ब्रह्मा और विष्णु, ब्रह्मा और विष्णु की पूजा करने के बाद आगे बढ़ने पर मंदिर का मुख गर्भ ग्रह मिलता है जिस के द्वार के दोनों ओर राधे श्याम लिखा हुआ है और ऊपर कांसे के पतरी पर भगवन शिव की खुदी हुई तस्वीर लगी हुई है. यहाँ से आप मुख्य गर्भ ग्रह में प्रवेश  करते हैं. गर्भ ग्रह के अंदर अखंड दीप जल रहा है जिस में रोजाना एक लीटर तेल जलता है. यह दीप उस दिन से जल रहा है जब से इस मंदिर का निर्माण हुआ था.

किस ने बनाया उमानंद मंदिर

इतिहास बताता है कि अहोम राजा गदाधर सिंह ने इस मंदिर को वर्ष 1694 में बनवाया था. वर्ष 1897  के विनाशकारी भूकंप के दौरान मूल मंदिर छतिग्रस्त हो गया था. बाद में एक स्थानीय व्यापारी ने फिर से मंदिर का निर्माण करवाया.

महाकाल शिव मंदिर

मंदिर से जैसे ही बाहर निकलते हैं मूल मंदिर से सटा एक और लाल रंग का मंदिर दिखाई देता है जिसे महाकाल शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस महाकाल शिवमंदिर का निर्माण वर्ष 1820 में हुआ था. इस मंदिर के अंदर भी शिव लिंग स्थापित है.

बद्रीनाथ मंदिर

महाकाल मंदिर से सटा हुआ एक और उजले रंग का छोटा सा मंदिर है जिसे बद्रीनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहाँ भी शिव लिंग स्थापित है. भक्तगण इन दोनों मंदिरों में बिना माथा टेके नहीं जाते. अगर मंदिरों का दर्शन करते करते आप के कानो में नगाडों की आवाज़ सुनाई देने लगे तो समझ लीजिए अब भोग का समय हो गया है. पहले बाबा को भोग लगाया जाता है और उसके बाद भक्तगण या पुजारी भोग ग्रहण करते हैं.

मान्यता

उमा का अर्थ है माँ यानी पार्वती और आनंद भगवान शिव का ही एक नाम है. इस मंदिर से नीलाचल पहाड़ी भी दिखाई देती है जहां स्थित है माँ कामाख्या देवी का मंदिर. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव यहाँ ध्यान  कर रहे थे तब माता पार्वती नीलाचल पहाड़ी पर उन की प्रतीक्षा कर रही थी. इस लिए इस मंदिर का नाम पड़ा गया उमानंद.

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर से भी कई इतिहास जुड़े हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं की द्वापर युग में गुवाहाटी को प्रागज्योतिष पुर  के नाम से जाना जाता था. उस समय ब्रहमपुत्र इस पहाड़ी के उत्तर की ओर से बहता था. दाहनी ओर एक सौदागर रहता था जिस के पास बहुत सारे जानवर थे. उन्हीं जानवरों में एक कामधेनु भैंस हमेशा दूध देने के लिए इस पहाड़ पर चली आती थी. जब सौदागर ने उसका पीछा किया तब देखा की वह एक बेल के पेड़ के नीचे दूध देती है. सौदागर ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां शिवलिंग दिखाई दिया. उसी रात सौदागर के सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए और वहाँ मंदिर बनाने का आदेश दिया. लेकिन उसी रात भारी भूकंप से ब्रहमपुत्र का बहाव दो भाग में बंट गया और वोह पहाड़ी ब्रहमपुत्र के बीचोबीच एक टापू की शक्ल में रह गया. जब नदी में पानी कम हुआ तब सौदागर वहां आया और एक मंदिर का निर्माण करवाया. उस के बाद समय के साथ साथ मंदिर बनते रहे और टूटते रहे लेकिन फिर भी वहाँ उमानंद मंदिर खड़ा है.

क्यों कहा जाता है ” भस्मांचल  “

यह तो इतिहास है शिव लिंग के प्रकट होने का और मंदिर निर्माण का,  लेकिन, एक इतिहास इस पहाड़ी से भी जुड़ा है जिस का वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है. ब्रह्मपुत्र नदी के बीचों बीच जिस पहड़ी पर उमानंद मंदिर का निर्माण किया गया है, उस पहाड़ी को “भस्मांचल ” के नाम से भी जाना जाता है. कालिका पुराण में इस बात का वर्णन किया गया है की सृष्टी के आरम्भ में जब भगवान शिव इस पहाड़ी पर ध्यान कर रहे थे, तब ही कामदेव ने उनका ध्यान बाधित किया था, शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी जिस से कामदेव जलकर भस्म हो गए और इसलिए इस पहाड़ी का नाम भस्मांचल पड़ा.

परम्परा 

इतिहास जो भी रहा हो लेकिन भक्तों को इस मंदिर में बहुत आस्था है. जो एक बार यहाँ आता है वोह बार बार आता है और जो नहीं आ सका उसे कम से एक बार यहाँ आ कर बाबा के दर्शन करने की ललक रहती है. कहते हैं कि वर्ष 1694 में जब अहोम राजा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया तब असम में कोई ब्रहमण परिवार निवास नहीं करता था. इसी लिए उत्तर प्रदेश के कन्नोज से दो परिवार आये थे और आज तक उन्हीं की पीढ़ी इस मंदिर का देख रेख करती है. मंदिर का नियम था कि पहाड़ पर किसी भी पुजारी का परिवार नही रहेगा और आज भी इस नियम का पालन किया जाता है. आज भी इस मंदिर में कुल 16 पुजारी हैं और सभी के परिवार यहाँ से 20 किलो मीटर दूर चान्ग्सारी में रहता है.

धर्म और आस्था का संगम 

यूं तो साल भर यहाँ भक्तों का आना जाना लगा रहता है लेकिन शिवरात्री के अवसर पर पूरे पहाड़ पर तिल धरने को जगह नहीं होती. इस मंदिर की एक और विशेषता यह भी है की यहाँ साल भर शाकाहारी भोग लगाया जाता है लेकिन शिवरात्रि के दिन मांसहारी भोग लगता है.

तीर्थ स्थल / शिवरात्री  मह्त्सव 

गुवाहाटी का यह उमानंदा मंदिर असम के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. यहाँ शिवरात्री बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है जिस में भाग लेने के लिए देश के कोने कोने से लोग आते हैं. उस के अलावा साल भर यहाँ पर्यटकों का तांता लगा रहता है. यूं तो आज की युवा पीढ़ी धर्म से काफी दूर होती जा रही है. लेकिन उमानंद में आने से आप का यह ख्याल बदल जाएगा. अच्छे पती पत्नी की तमन्ना लिए युवा जोड़ियां यहाँ काफी संख्या में आते हैं. शिवरात्री के दिन पार्वती की तरह पत्नी की और शिव की तरह पति पाने की तमन्ना लिए काफी युवक युवतियां, शिव आराधना करते नज़र आते हैं. शिवरात्री के दिन उमानंद में खास 4 प्रकार की पूजा का विधान है. शिवरात्री के दिन यहाँ दिनभर भोग भी चलता रहता है. कोई भी व्यक्ती बिना भोग खाए मंदिर परिसर से वापस नहीं जाता. कहा जाता है की इस दिन मांगने वालों की हर मनोकामना भोले बाबा पूरी करते हैं.

उमानंद मंदिर से सम्बन्धित विडियो देखने के लिए क्लिक करें 

 

WATCH VIDEO OF DEKHO NORTHEAST

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button