कभी राष्ट्रीय तीरंदाज रही बुली बसुमतारी संतरा बेचने पर मजबूर
चिरांग
एक समय तीरंदाजी के जगत में प्रसिद्धी हासिल कर चुकी असम की पुरस्कार विजेता तीरंदाज बुली बसुमतारी अब सड़क पर संतरे बेचती है| अपनी आजीविका चलाने के लिए बुली को मजबूरन यह सब करना पड़ता है|
असम के चिरांग जिले की रहने वाली बुली को 2004 में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने प्रशिक्षण दिया था और उन्होंने राजस्थान में नेशनल सब जूनियर आर्चरी चैंपियनशीप में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता| उन्होंने महाराष्ट्र में आयोजित नेशनल जूनियर आर्चरी चैंपियनशीप में भी एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीता| झारखंड में आयोजित नेशनल सीनियर आर्चरी चैंपियनशीप के 50 मीटर इवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर बुली सुर्खियों में छाई थी| इसके अलावा उन्होंने कई राज्य और क्षेत्र स्तरीय पुरस्कार भी अपने नाम किए|
2010 में बुली की जिंदगी बदल गई जब शारीरिक चोट की वजह से उन्हें आजीवन खेल से संन्यास लेना पड़ा| आर्थिक तंगी की वजह से खेल जगत को अलविदा कहने वालों में से एक नाम है बुली बसुमतारी| बुली के परिवार का कहना है कि कीमती धनुष-बाण खरीदने में असमर्थ होने की वजह से उसे अपना प्रशिक्षण बीच में ही छोड़ना पड़ा| हमें सरकार से कभी कोई मदद नहीं मिली|
दो बच्चों की मां बुली बसुमतारी आज सड़कों पर संतरे बेचकर अपनी आजीविका चलाती है| भारत-भूटान सीमा स्थित समथाईबाड़ी के राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर उन्हें रोजाना देखा जा सकता है| अवकाश के वक्त में बुली सिडली-कोशिकोत्रा हायर सेकेंडरी स्कूल में 4 छात्रों को प्रशिक्षण देती है|
बुली का कहना है कि उन्होंने कई बार अर्द्धसैनिक बल में शामिल होने का प्रयास किया लेकिन विफल रही|