असम में पहली बार ‘डायबिटिक फुट डे’ व ‘प्रोजेक्ट चरण स्पर्श’ का आयोजन होने जा रहा है जो आने वाले दिनों में मील का पत्थर साबित होगा- प्रख्यात फुट सर्जन डॉ. सुधीर जैन
गुवाहाटी
आप ने डायबिटीज डे, हेल्थ दे, एड्स डे, किडनी डे, मलेरिया अस्थमा डे, वगैरहा-वैगरहा का नाम सूना भी होगा और शायद मनाया भी होगा लेकिन किया आप ने कभी ‘डायबिटिक फुट डे’ की नाम सूना है या मनाया है , शायद नहीं.
हम आप को बता दें कि पहली इस अनूठे दिवस का पालन का शुभारंभ हमारे असम में होने जा रहा है जो कि आने वाले दिनों में मानव सेवा का अद्भुत मिसाल होगी.
असम के जाने माने प्रख्यात फुट सर्जन डॉ. सुधीर जैन की सोच और कोशिशों से ‘डायबिटिक फुट डे’ ( डायबिटिक चरण दिवस ) का पहला होने जा रहा है जो हर वर्ष 23 अप्रेल को मनाया जाएगा. इसके साथ ही एक सामाजिक जागरूकता का प्रकल्प “ चरण स्पर्श “ का भी शुभारंभ किया जाएगा, जो हमें अपने पांव के विभिन्न आरम्भिक व्याधियों का स्वयं निदान करने में सहायक होगा.
डॉ. जैन के अनुसार आज पाँव की बदौलत मानव समाज विकास के उच्च पायदान पर पहूँच पाया है. लेकिन फिर भी पाँव की अवहेलना की जाती है. मनुष्य जीवन में पाँव का मूल्य, इसको खोने के बाद ही महसूस किया जा सकता है. दुख इस बात का है कि जागरूकता के आभाव में आज हर 30 सेकेण्ड में डायबिटीज जनित संक्रमण की वजह से एक पाँव काटा जाता है. किन्तु अच्छी बात यह भी है कि सही और समय पर इलाज होने पर 80 प्रतिशत पाँव को बचाया जा सकता है.
डॉ. जैन मानते हैं कि डायबिटीक फुट डे के दिन लोग समय निकाल कर अपने और दूसरों के पाँव पर चर्चा करें , पाँव महत्त्व को समझें तथा इनको सहेज कर रखें.- यही मूल भावना है.
आने वाले दिनों में डायबिटीक फुट डे के दिन , सभा, सम्मेलन, रैली पाँव की जांच पड़ताल, का कैंप वगेराह का आयोजन किया जाना चाहिए. सही चप्पल, जूतों का चयन प्रणाली, पाँव के प्रती भूल-भ्रांतियां, अंध विशवास आदि पर प्रकाश डाले जाने का एक अवसर प्राप्त होगा.
वार्षिक आयोजन से आशा है मनुष्य अपने पाँव के प्रती सजग हो, इनको सुरक्षित रख समाज व देश विकास में भागीदारी हो सकेगा.
डॉ. जैन के अनुसार “प्रोजेक्ट चरण स्पर्श” के ज़रिए कोई भी व्यक्ति अपने और अन्य व्यक्तियों के पाँव की जांच पड़ताल कुछ ही छण में कर पाएगा.
डायबिटीज़ रोग में मरीज़ के पाँव सुन्न हो जाते हैं. इस से पाँव में लगे चोट को महसूस नहीं किया जा सकता. यही साधारण चोट सही समय पर सही इलाज नहीं मिलने पर सेप्टिक का रूप धारण कर लेते हैं. जिस से पाँव तथा जान दोनों के लिए कतरा पैदा हो जाता है.
किन्तु यदी रोगी अपने पाँव को अपने हाथों से, जो की संवेदनशील रहते हैं , पाँव की बीमारियों को महसूस कर सकता है. इस से बीमारी को और बढ़ने से आसानी से रोका जा सकता है.
यदी पद्धती यानी चरण स्पर्श एक अंत्यंत सहज प्रक्रिया है जिस से मनुष्य अपने या अन्य व्यक्तियों के पाँव के हर हिस्सों को को छु कर महसूस कर सकता है.
डॉ. जैन मानते हैं कि पाँव छूने की भारतीय परंपरा को पुनर्जीवित कर प्रोजेक्ट चरण स्पर्श ईश्वरीय प्रदत्त पाँव रूपी अमूल्य भेंट को सहेज कर रख सकने में मील का पत्थर साबित हो सकता है.
व्यक्ति, परिवार , समाज, गैर सरकारी , सरकारे संस्थाओं, आड़े के सहयोग से आशा है डॉ. जैन के अनूठे मानव कल्याणकारी प्रयास से पूर्वोत्तर में पाँव के प्रती एक नयी चिन्ताधारा की श्रिष्टी होगी.