पत्रकार मनु भट की मिजोरम यात्रा ………
आइजॉल ( मिजोरम )
जहां ट्रैफिक जाम तो होता है लेकिन ……. लेकिन कोई भी हॉर्न नहीं बजाता ……
पिछले दिनों उत्तर पूर्व के राज्य मिजोरम जाना हुआ। करीब 5 दिन मिजोरम में बिताने के बाद कुछ बातें लिखने को मन कर रहा है।
ये बात हम सब जानते हैं कि पहाड़ के सभी शहरों की हालत लगभग एक जैसी ही होती है। पहाड़ी शहर प्राकृतिक तौर पर खूबसूरत होते हैं। बरसात के मौसम में तो हरे पहाड़ों के बीच बादलों का आना जाना इस खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है। बारिश के मौसम की हल्की ठंडक में इन खूबसूरत पहाड़ों में रहने का मजा ही कुछ अलग है। लेकिन पहाड़ों पर गाड़ियों का बढ़ता दबाव समस्या खड़ी करता है। सबको गाड़ी चाहिए। एसे में पहाड़ पर जाम लग जाना सामान्य बात है। मिजोरम में भी सड़कों पर एसे ही जाम लगता है जैसे उत्तराखंड के किसी भी पहाड़ी शहर में जाम लगता है।
लेकिन इन सबके बीच एक खास बात मिजोरम में हमने महसूस की। यंहा की आब-व-हवा जो उत्तराखंड की याद दिला देती है। लेकिन यंहा के लोगों में जिस तरह की शालीनता देखने को मिली वो दूसरे पहाड़ी क्षेत्रों ही नहीं बल्कि सभी शहरों को सीखनी चाहिए।
मिजोरम की सड़कों पर भारी भीड़ होने के बावजूद, सड़क पर जाम के हालात होने के बावजूद कोई भी व्यक्ति अपनी गाड़ी का हॉर्न नहीं बजाता। कोई भी व्यक्ति का मतलब स्कूटर, मोटरसाइकिल, प्राइवेट कार, सरकारी कार और टैक्सी यानी कैब से है।
एक बात और बता देनी जरूरी है कि हम मिजोरम की राजधानी आइजॉल की बात कर रहे हैं। यंहा की आबादी उत्तराखंड के किसी भी पहाड़ी शहर के मुकाबले बहुत ज्यादा है। करीब साढ़े तीन लाख लोगों की आबादी वाले पहाड़ी शहर के जाम में हम भी फसे लेकिन यकीन मानिये किसी भी तरह के शोर के बीच उस जाम में समय तो जरूर बर्बाद हुआ मगर किसी ने भी कान फोड़ू हॉर्न नहीं बजाया। आश्चर्य तो इस बात को लेकर है कि हॉर्न बजाने या न बजाने को देखने के लिए को लेकर कोई पुलिस कर्मी चौराहों पर मौजूद नहीं है। लोगों ने खुद ही इसे अपनी रोजमर्रा की आदत में शुमार कर लिया है।
हमने ऐसे कई लोगों ने बात की जो आइजॉल में गाड़ी चला रहे थे। उनके ही सीधे सरल शब्दों में बता दूं कि एक तो वो सामने वाले व्यक्ति की समझ का आदर करते हैं दूसरा वो खुद को भी शालीन और शांत दर्शाकर ध्वनी प्रदूषण पर नियंत्रण लगा रहे हैं।
उत्तराखंड के किसी भी पहाड़ी शहर की आबादी आइजॉल के बराबर नहीं है। लेकिन जो ट्रैफिक सेंस वहां दिखाई दिया वो काबिल-ए-तारीफ है। हमें भी इन लोगों से कुछ सीखना चाहिए।
( ज़रूर पढ़ें यात्रा का पार्ट-2 )