तवांग- जहां बर्फ़ीली पहाड़ियों और बादलों से होता है सामना
By Shringarika Shankar
सर्दी की छुट्टियां चल रही थी, ऐसे में मेरा पूरा परिवार कहीं घूमने की योजना बना रहा था। तभी मेरे अंकल ने तवांग घूमने की सलाह दी जो हम सबको बेहद पसंद आया। तवांग का सफर के बारे में हम ने इतना सुन रखा था कि यहाँ हर मोड़ पर ऊंची ऊंची बर्फ़ीली पहाड़ियों और बादलों से होता है सामना – लेकिन तवांग जाने से पहले इनर लाइन परमिट की औपचारिकता पूरी करनी थी। मैं उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी । आखिरकार वह दिन आ ही गया और हमने गुवाहाटी से तवांग की ओर सड़क मार्ग से अपना सफर शुरू किया। अगर सब कुछ सही रहा तो हमारा लक्ष्य उसी रात बोमडिला पहुँचने का था। चूँकि हम अपने तय समय से पहले सफर पर निकले थे इसलिए सफर के दौरान हमने कुछ स्थानों पर रुककर सुंदर पहाड़ियों के बीच तस्वीरें लेने की सोची। हालांकि असम-अरुणाचल सीमा पर हमारी आईडी और अन्य दस्तावेजों के सत्यापन में थोड़ा वक्त लग गया।
जैसे-जैसे हम बोमडिला की तरफ बढ़ रहे थे हमें दिसंबर महीने की कंपकंपाती ठंड महसूस हुई। योजना के मुताबिक हम उसी रात बोमडिला पहुँच गए। लेकिन सब थक चुके थे इसलिए अगली सुबह सफर पर निकलने का तय किया गया। अगली सुबह हम तवांग तक की यात्रा पर पुनः निकल पड़े। मैं सेला पास (sela pass) पहुँचने को बहुत बेताब हो रही थी, चूंकि सफर पर आने से पहले मैंने सेला पास के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। आखिरकार हम उस स्थान पर पहुँच ही गए और वहां खुबसूरत पहाड़ियों के बीच हमारा मन झूम उठा। सूरज के आसमान में चमकने से अब ठंड से भी हमें राहत मिल गई थी। सेला पास में चारों तरफ शांति थी। यह एक ऐसी जगह है जहाँ अगर शीत लहर ना चल रही हो तो कोई भी व्यक्ति ध्यान में मग्न हो सकता है। यहाँ इतनी खामोशी थी कि दिल की धड़कने भी सुनाई दे। इस इलाके को अच्छे से सजाया गया था। यहाँ बर्फ पर बौद्ध धर्म के झंडे भी गड़े हुए है। यह नजारा मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती
इसके बाद हम वहां से निकलकर जसवंत गढ़ पहुंचे जहां वीर सैनिक जसवंत सिंह का स्मारक बना हुआ है। कुछ समय स्मारक के पास गुजारते हुए मैंने वहां ड्यूटी पर तैनात अन्य सिपाहियों से उनकी बहादुरी के किस्से सुने तो मेरा मन अपने देश और उन वीर सैनिकों के लिए गर्व से भर गया जो अपने प्राणों की आहुति देकर अपने देश की रक्षा करते है। स्मारक में रुकने वाले मुसाफिरों के लिए यह सैनिक मुफ्त खाने-पीने की व्यवस्था करते है जो सफर से थके मुसाफिरों को काफी राहत दिलाती है। आखिरकार उसी शाम 7 बजे हम तवांग पहुँच गए।
अगले दिन हम तवांग मठ देखने गए। यह भी एक ऐसी जगह है जहाँ एकांत परिवेश मिलेगा। मठ के संग्रहालय और स्थानीय लोगों द्वारा खिंची गई तस्वीरों से हमने यहाँ की स्थानीय संस्कृति की जानकारी हासिल की। हम भारत-चीन सीमा के पास बुमला पास(Bumla pass) भी गए। यहाँ ऐसा लग रहा था मानों बर्फ से ढकी हुई पहाड़ियों की चोटी और उसके बीच हम बादलों पर चल रहे हो। यहाँ झील भी बर्फीली थी। मेरी चचेरी बहन हाथ में बर्फ लेकर स्नो-मैन बनाने की कोशिश कर रही थी जबकि मैं और मेरे चचेरे भाई एक-दूसरे पर बर्फ के गोले फेंक रहे थे। भारी बर्फबारी और आगे का रास्ता खराब होने की वजह से हम पहाड़ की चोटी तक नहीं जा पाए। लेकिन मैं वहां से मायूस नहीं लौटी। शाम को हम शहर वापस लौटे और शौपिंग की। मैंने इस सफर को यादगार बनाए रखने के लिए कुछ पारंपरिक वस्तुएं खरीदी।
हमें अगले दिन तवांग से घर लौटना था। गुवाहाटी आने के लिए हम फिर उसी रास्ते पर निकल पड़े और अगले दिन घर पहुँच गए। तवांग का यह सफर एक सपना पूरा होने जैसा है। मैं इन हसीन यादों को पूरी जिंदगी संजोकर रखूँगी ।
तवांग का सफर शुरू करने के लिए कुछ बातें –
- अगर सड़क मार्ग से जाए तो इंनोवा कार या सूमो को भाड़े पर लें.
- गुवाहाटी और तवांग के बीच बहुत दूरी है इसलिए सफर को दो भागों में बांटे.
- गुवाहाटी से सफर शुरू कर रात को बोमडिला में रुके.
- सफ़र शुरू करने से पहले इनर लाइन परमिट ज़रूर लेलें. जो अरुणाचल सरकार के केई भी टूरिज्म ऑफिस से मिल जाता है.