गुवाहाटी
जहाँ चाह वहां राह, इस कहावत को जमुना बोड़ो नामक असम की इंटरनेशनल बॉक्सर ने एक बार फिर सही साबित किया है| शोणितपुर जिले के बेलसिरी गाँव की निवासी जमुना की मां निर्माली बोड़ो सड़क पर सब्जियां बेचती है, लेकिन उन की बेटी और इंटरनेशनल बॉक्सर जमुना बोरो ने गरीबी के बावजूद आज यह मुकाम हासिल किया है जो सभी के लिए एक प्रेरणा है|
जमुना ने 10 साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया| जमुना के पिता की मृत्यु के बाद जमुना की मां निर्माली को अपनी दो बेटियों और एक बेटे के लालन-पालन में काफी तकलीफें झेलनी पड़ी| हालांकि निर्माली की सबसे छोटी बेटी 19 वर्षीय जमुना ने परिवार की गरीबी को अपने लक्ष्य पर हावी नहीं होने दिया|
आज जमुना बोड़ो एक अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज है जिसने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारत के लिए कई मैडल जीती है|
गाँव में उचित प्रशिक्षण के अभाव के बीच ही जमुना ने वर्ष 2013 में सर्बिया में आयोजित सेकंड नेशंस कप इंटरनेशनल सब-जूनियर गर्ल्स बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीतकर अपने देश का नाम रौशन किया| इसके बाद वर्ष 2014 में रूस में आयोजित प्रतियोगिता में भी उसने स्वर्ण पदक जीता| वर्ष 2015 में भी तायपेई में जमुना ने भारत की ओर से 57 किलो की श्रेणी में यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशीप में कांस्य पदक जीता|
प्रारंभ में जमुना ने गाँव में वुशु खेलना शुरू किया था और बाद में उसने मुक्केबाजी का प्रशिक्षण ग्रहण किया| गाँव में कुछ लड़कों को उसने वुशु खेलते हुए देखा और उनसे प्रेरित होकर उसने भी वुशु खेलना शुरू किया|
वुशु के खेल में जमुना ने जिला स्तर पर स्वर्ण पदक भी जीता| हालांकि जमुना को इस बात का दुःख है कि गाँव में किसी तरह के प्रशिक्षण की खास व्यवस्था नहीं है| जमुना को वुशु का प्रशिक्षण देने वाले उसके दो कोच जोसेष्मीक नर्जारी और होनोक बोड़ो ने वर्ष 2009 में उसे भारतीय खेल प्राधिकरण में प्रशिक्षण हासिल करने का मौका दिया और यहीं से मुक्केबाजी में जमुना का प्रशिक्षण शुरू हुआ|
वर्ष 2010 में तमिलनाडू में आयोजित सब-जूनियर विमेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशीप में जमुना ने पहली बार 52 किलो की श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता| वर्ष 2011 में दूसरी बारCoimbatore में आयोजित सब-जूनियर विमेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशीप में एक बार फिर जमुना स्वर्ण पदक जीतकर चैंपियन बन गई|
अपने राज्य और अपने देश को गौरवांवित करने के बावजूद जमुना बोड़ो के घर की हालत आज भी नहीं सुधरी है| आज भी उसकी मां निर्माली बोड़ो को सब्जियां बेचकर अपना घर चलाना पड़ रहा है| जमुना का पूरा परिवार बेलसिरी रेलवे स्टेशन के सामने एक अस्थाई घर में रहता है|
कठिन परिस्थितियों के बावजूद जमुना एक न एक दिन ओलिंपिक जीतने का सपना रखती है और मैरी कोम को अपनी प्रेरणा मानती है| जमुना कहती है, “तीन बच्चों की मां होने के बावजूद मैरी कोम की मुक्केबाजी में आज भी इतना दम है| अगर वह कड़ी मेहनत कर सकती है तो मैं क्यों नहीं?”
जमुना का कहना है कि उसने अकादमी में लड़कों के साथ प्रशिक्षण लिया है और जब वह रिंग में होती है तो उसका लक्ष्य सामने वाले को हराना होता है फिर चाहे वह लड़का ही क्यों न हो|
जमुना का अगला लक्ष्य वर्ष 2020 में टोक्यो में होने जा रहे ओलिंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करना है| वह ओलिंपिक में मैडल हासिल कर अपने देश का नाम रौशन करना चाहती है| लेकिन क्या इस देश में जमुना के जज्बे की कदर होगी? आज भी एक अनसुलझा हुआ सा सवाल बना हुआ है कि देश को गौरवांवित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों की दशा कब सुधरेगी?