गुवाहाटी
By Manzar Alam
देश भर में मकर संक्रांति का त्यौहार धूम धाम से मनाया जा रहा हैI कहीं बिहू तो कहीं पोंगल और कहीं लोहड़ी तो कहीं मकर संक्रांति की धूम हैI मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है जो पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार अधिकतर जनवरी माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। कभी-कभी यह त्यौहार बारह, तेरह या पंद्रह को भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और इसी कारण इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।
इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। असम में बिहू तो पंजाब में लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
बिहू-
मकर संक्रान्ति के दिन असम में माघबिहू मनाया जाता है। इस अवसर पर भर पूर मात्रा में हुई फ़सल किसान को आनन्दित करती है। यह त्यौहार जाड़े में तब मनाया जाता है, जब फ़सल कट जाने के बाद किसानों के आराम का समय होता है। माघबिहू पर मुख्य रूप से भोज देने की प्रथा है। इस कारण इसे “भोगाली बिहू” कहते हैं। स्त्रियाँ चिड़ावा, चावल, टिल और गुड़ की तरह–तरह की मीठाईयां तैयार करती हैं। ये सब चीज़ें दोपहर के समय गुड़ और दही के साथ खाई जाती हैं। मित्रों तथा सगे सम्बन्धियों को आमंत्रित कर आदर दिया जाता है।
लोहड़ी-
पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां इकट्ठा करने लग जाते हैं। लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है। लोग अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग में रेवड़ी, खील, मक्का की आहुति देते हैं। आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।
कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
पोंगल-
तमिलनाडु के लोग फसल के इस त्योहार पोंगल को उल्लास के साथ मनाते हैं और वर्षा, सूर्य व मवेशियों के प्रति आभार जताते हैं। लोग सुबह जल्दी उठकर, नहा धो कर नए कपड़े पहनकर मंदिरों में जाते हैं। घरों में क्योंकि पारंपरिक पकवान चावल, गुड़ और चने की दाल से बनाई जाती है। चकराई पोंगल की सामग्री दूध में उबल कर लोग ‘पोंगलो पोंगल’, ‘पोंगलो पोंगल’ बोलते हैं। भगवान सूर्य के प्रति आभार जताने के लिए उन्हें पोंगल का पकवान का भोग लगाया जाता है, जिसके बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। लोग एक दूसरे को पोंगल की बधाई देते हैं और चकराई पोंगल का आदान-प्रदान करते हैं। पोंगल का त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है।