भोगाली बिहू – उरुका, मेजी और भेला घर
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गुवाहाटी
भोगाली बिहू मनाने का अंदाज़ भी बड़ा निराला है. इसे पूरा का पूरा गाँव एक साथ मिल कर मनाता है. इस के लिए. गाँव के बाहर, घांस फूस और बांस की मदद से एक कुटीया बनाई जाती है जिसे “ भेला घर ” कहते हैं. सूरज ढलने के बाद गाँव वाले इस भेला घर में एकत्रित होने लगते हैं. और फिर शुरू हो जाता है खाने पीने, नाच-गाने और मौज मस्ती का सिलसिला जो रात भर चलता रहता है. कोई गरीब या अमीर नहीं होता. रात भर पीठा और मछली की तरह तरह के पकवान बनते रहते हैं. और हर कोई इन गरमा गर्म स्वादिष्ट पकवानों के चटखारे लेता रहता है. इन पकवानों को महिलाएं और पुरुष सभी मिल जुल कर बनाते हैं. एक तरफ पकवान बनते रहते हैं तो दूसरी तरफ कुछ लोग बिहू नृत्य करते रहते हैं. कोई थक गया तो उस की जगह दूसरा ले लेता है लेकिन न्रत्य का सिलसला बंद नहीं होता. भेला घर के पास ही चार बांस लगा कर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज का निर्माण किया जाता है. जिसे “ मेजी कहते हैं. उरुका के दूसरे दिन सुबह स्नान कर के मेजी जला कर माघ बिहू या भोगाली बिहू का शुभारंभ किया जाता है. जो कई दिनों तक चलता है. मेजी जलाने की प्रक्रिया ठीक वैसा ही होती है जैसे होली में होलिका दहन होता है.
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