Manipur Violence: क्यों जल उठा मणिपुर, Watch Video
दोस्तों आज के इस वीडियो में जानेंगे के आखिर इस हिंसा का कारण किया है जिसे अच्छी तरह से समझने के लिए पहले मणिपुर का इतिहास में झांकना जरूरी है।
Reason Behind Manipur Violence पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 3 मई को आदिवासी एकता मार्च के दौरान भड़की हिंसा में आठ जिले चपेट में आ गए. देखते देखते घर, कार्यालय और सड़कों पर वाहन जलाए जाने लगे। राज्य सरकार को कर्फ्यू लगानी पड़ी, मोबाईल इंटरनेट सेवा बंद करना पड़ा, मुख्य मंत्री शांति बनाए रखने के लिए लोगों से अपील कर रहे थे लेकिन हिंसा बढ़ती ही जा रही थी। बिगड़ते हालात को देखते हुए सड़कों पर सेना उतार दिया गया। और शूट- ऐट – साईट का ऑर्डर भी देना पड़ा।
दोस्तों आज के इस वीडियो में जानेंगे के आखिर इस हिंसा का कारण किया है जिसे अच्छी तरह से समझने के लिए पहले मणिपुर का इतिहास में झांकना जरूरी है।
पूरा मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है. जबकि 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा इलाका पहाड़ी है.
यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय बस्ते हैं. पहला- मैतेई, दूसरा- नागा और तीसरा- कुकी ( Meitie, Kuki and Naga ) इनमें नागा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं. जबकि, मैतेई गैर-आदिवासी हैं.
नागा और कुकी को राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है.
इन तीनों के अलावा यहां मुस्लिम आबादी भी है. साथ ही यहां गैर-आदिवासी समुदाय से आने वाले मयांग भी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर यहां बसे हैं.
मणिपुर में हुयी हिंसा की जड़ ‘ अधिकार की लड़ाई है. यानी किस समुदाय का कहाँ और कितना अधिकार या दबदबा हो सकता है।
इसे ऐसे समझिए कि मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, यानी मैतेई समुदाय मजोरिटी में हैं , लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं जो की राज्य का केवल 10 प्रतिशत है, वो पहाड़ियों में नहीं बस सकते.
वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जो राज्य का 90 फीसदी इलाका है.
मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसप्रावधान के तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी यानी कुकी और नागा ही बस सकते हैं.
चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति यानी ST का दर्जा हासिल नहीं है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी आदिवासी समुदाय चाहें तो पहाड़ी के अलावा घाटी वाले इलाकों में भी जाकर रह सकते हैं.
और यही प्रावधान ही मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की असली कारण है. इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी.
राज्य का मैतेई समुदाय इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। समुदाय का आरोप रहा है कि राज्य में म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से भी उन्हें परेशानीयों का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, मौजूदा कानून के तहत उन्हें राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी।
अदालत में याचिकाकर्ता ने कहा कि 1949 में भारत में शामिल होने से पहले ही उन्हें ट्राइब्स के रूप में सूचीबद्ध किया था। लेकिन 1950 में जब संविधान की ड्राफ्टिंग हुई उसके बाद उन्हें एसटी वाली सूची से बाहर कर दिया।
इसी याचिका पर बीती 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसले सुनाया और राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद मैतेई समुदाय को एसटी कैटेगरी में शामिल करने की मांग तेज होने लगी थी।
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मैतेई समुदाय दवरा तेज होती उसे इसी मांग के विरोध में 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था.
ये मार्च चुरचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में हुआ था. इस रैली में हजारों प्रदर्शनकारी शामिल हुए थे. खबरों के अनुसार इसी दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसा शुरू हो गई. शाम तक हालात और बिगड़ गए और रात भर हिंसा की घटनाएं घटती रहीं ।
भारतीय मुक्का बाजा मैरी कॉम ने भी देर रात करीब तीन बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट कर लिखा, “मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है। कृपया मदद कीजिए.“ उन्होंने इस ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री कार्यालय, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टैग करते हुए मणिपुर में आगजनी की फोटो शेयर की और मद्द की गुहार लगाई।
जारी हिंसा के बीच मुख्य मंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि हिंसा की ये घटनाएं हमारे समाज के दो वर्गों के बीच पैदा हुई गलतफहमी की वजह से हुई हैं।
अब समझते हैं की आखिर ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर, मैतेई समुदाये के अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग का विरोध क्यों कर रहा है।
ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहिसियाल का एक ब्यान अखबारों में छापा है जिस में उन्हों ने यह शंका जतायी है की अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिला तो वो हमारी सारी जमीन हथिया लेंगे.’
यूनियन का तर्क है कि कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, उनके पास न, शिक्षा थी और न ही रोजी रोटी कमाने को कोई जरिया। वो सिर्फ झूम की खेती पर ही जिंदा थे.
वहीं, मैतेई समुदाय का आरोप है कि पहाड़ों और जंगलों में बसे अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने की राज्य सरकार की कार्रवाई से कुकी समुदाय नाराज है. इस लिए ST का बहाना बना कर हिंसा को अंजाम दिया गया ता की पहाड़ों पर अवैध रूप से बसे आदिबासियों को खिलाफ सरकार की मुहिम को रोका जा सके।
बहरहाल दोनों ही समुदाय की शिकायतों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह भी समझना होगा की हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नहीं धूनडा जा सकता है। इस लिए जरूरत है दोनों समुदायों को साथ ले कर समस्या का समाधान धूनदा जाए और इस में सब से बड़ी भूमिका दोनों समुदाय के नेता निभा सकते हैं फिर चाहे वह किसी भी राजनीतिक पार्टी से हों या किसी भी छात्र संगठन के हों। जरूरत है शांति से एक साथ बैठ कर समस्या का संधान धूनदना।
दोस्तों आज के इस वीडियो में इतना ही। अगले वीडियो में फिर मिलेंगे और बताएंगे इंडिया क्या बोल रहा है। तब तक के लिए नमस्कार।