धर्मांतरण एक स्वैच्छिक प्रक्रिया– दलाई लामा

गुवाहाटी
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने आज अपने असम दौरे के दूसरे दिन धर्मांतरण के मुद्दे पर बोलते हुए उसे बल द्वारा नहीं स्वैच्छिक प्रक्रिया बताया| चीन द्वारा भारी विरोध के बावजूद तिब्बती आध्यात्मिक नेता 14 वें दलाई लामा-नोबेल पुरस्कार विजेता तेनेज़िन ग्यात्सो असम और अरुणाचल प्रदेश की दो सप्ताह की लंबी यात्रा पर गुवाहाटी पहुंचे है। अपने दौरे के पहले दिन दलाई लामा ने चीन की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि चीन के लिए आपत्ति जताना सामान्य बात है, उन्हें इससे कोई समस्या या डर नहीं है।
धर्मनिरपेक्षता और आतंकवाद इन दो प्रमुख मुद्दों पर बल देते हुए दलाई लामा ने द असम ट्रिब्यून के प्लैटिनम जयंती समारोह में कहा, “लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोच्च हैं और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए| मैं 200 से अधिक देशों में जा चुका हूँ, लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ भौतिक विकास के साथ ही करुणा भी संरक्षित है। करुणा के बिना अहिंसा असंभव है| इस मौके पर असम के राज्यपाल बानोवरलाल पुरोहित और असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भी उपस्थित थे।
आज दलाई लामा ने अपनी पहली आत्मकथा- माई लैंड एंड माई पीपल के असमिया संस्करण का विमोचन किया| असम ट्रिब्यून के प्लैटिनम जयंती समारोह में हिस्सा लेने के बाद नमामी ब्रह्मपुत्र महोत्सव पहुंचे बौद्ध भिक्षु ने धर्मांतरण की निंदा की और इसे गलत ठहराया। दलाई लामा ने कहा, अपने धर्म का चयन करने के लिए व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए । उन्होंने कहा कि बल द्वारा नहीं बल्कि धर्मांतरण स्वैच्छिक रूप से होना चाहिए|
उन्होंने आगे कहा, “मैं कभी भी पश्चिमी देशों के दौरे के दौरान बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं करता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि व्यक्ति को अपने पारंपरिक धर्म का पालन करना चाहिए, लेकिन अन्य परंपराओं का अध्ययन करना चाहिए ताकि दूसरों के लिए समझ, सम्मान और करुणा विकसित हो सके।”
उन्होंने कहा, “जब मैं तिब्बत में था तब मैं सोचता था कि बौद्ध धर्म सबसे श्रेष्ठ है , लेकिन जब मैं भारत आया और हिंदुओं, मुसलमानों, यहूदियों, ईसाईयों, पारसी और अन्य धर्मों के लोगों से मिला तो मुझे एहसास हुआ कि प्रत्येक धर्म का अपना मूल्य है और विश्व शांति के लिए उसे समझना चाहिए|”