असम के तिनसुकिया में “D Voter” बना महिला की मौत का कारण और कर दिया पांच बच्चों को बेसहारा, —– पढ़िए यह रिपोर्ट और जानिए कैसे हुआ यह सब
तिनसुकिया
“D Voter” का टैग ने असम के तिनसुकिया में एक ही परिवार के 5 बच्चों को अनाथ कर दिया. बूढ़ी दादी तीन दिन पहले परलोक सुधार गयीं. माँ बाप तीन महीन से जेल में हैं, क्योंकि उन के नाम के आगे “D Voter” का टैग लग गया था. अब माँ बाप के रहते यह 5 बच्चे अनाथ हो गए हैं. आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी उन्हें नहीं पता….आगे अन्धकार ही अन्धकार है….. उसअँधेरे में अपने माता पिता को भारतीय नागरिक सिद्ध करना एक चुनौती बन कर उन के सामने आया है….
40 के दशक में उत्तर प्रदेश के बलिया से आ कर तिनसुकिया में बस गए प्रजापति परिवार को इस हाल में पहुंचाने का ज़िम्मेद्दर कौन है…..? यह एक बड़ा प्रश्न बन का आ खड़ा हुआ है है.
क्या है पूरी कहानी-
परशुराम प्रजापती अपनी पत्नी छोटकी देवी के साथ वर्ष 1945 में उतर प्रदेश के बलिया से आ कर तिनसुकिया में बस गए. यहीं वह पांच बच्चों का पिता भी बने. पिता के मौत के बाद उन के दो बेटे राजेश और दिनेश प्रजापती अलग अलग रहने लगे.
सभी बच्चे शादी विवाह के बाद अपने अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत करने में व्यस्त हो गए. बूढ़ी माँ यानी छोटकी देवी अपने बेटे दिनेश और बहु तारा देवी के साथ रहती थीं.
गरीब परिवार का गुज़र बसर जैसे तैसे चल रहा था. दो वक़्त की रोटी के पीछे दिनेश दिन रात मेहनत करता रहता था. वोह पांच बच्चों का पिता बन चुका था. इन्द्रा आवास योजना के तहत दिनेश को एक छोटा सा मकान भी मिला था जिस में वोह अपनी पत्नी तारा देवी, बूढ़ी माँ छोटकी देवी और पांच बच्चों के साथ रहा करता था.
वर्ष 2012 में अचानक मत्त्दाता सूची में दिनेश और उस की पत्नी तारा देवी के नाम के आगे ” D ” शब्द लग गया. यानी दिनेश और उस की पत्नी तारा देवी को संदिग्ध मत्त्दाता करार दे दिया गया. उस के बाद दोनों पती पत्नी को अदालात में हाज़िर होने के लिए कई बार नोटिस आये, लेकिन शिक्षित नहीं होने के कारण दिनेश ने उन नोटिस का कोई महत्व नहीं समझा और कभी भी अपने दस्तवेज़ ले कर अदालत नहीं गया. शायद यही उस की सब से बड़ी ग़लती थी.
अदालत में हाज़िर नहीं होने के कारण दोनों पती पत्नी के नाम गैर ज़मानती वारंट जारी हो गया. तीन महीने पहले दोनों को गिरफ्तार कर डिटेनशन कैम्प में डाल दिया गया. उस के बाद तो मानो परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा. घर का इकलौता कमाने वाला शक्श जेल में था. दिनेश के पांच बच्चे अपनी बूढ़ी दादी के साथ रह रहे थे और अपने माता पिता की भारतीय नागरिकता सिद्ध करने के जद्दोजहद में लगे थे.
लेकिन उन पर तो अभी मुसीबतों के और पहाड़ टूटने थे. बूढ़ी दादी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पायी और 15 अगस्त के दिन परलोक सुधार गयीं. गरीबी की इन्तेहा और मुसीबत यह थी के छोटकी देवी का अंतिम दाहसंस्कार करने के लिए न तो परिवार में न कोई समझदार सदस्य था और न ही बच्चों के पास पैसे थे.
आखिर कार गँव वालों और कुछ समाजिक सेवी संगठनों ने मिल जुल कर छोटकी देवी का अंतिम संस्कार किया ….
बच्चे अब माता पिता के रहते अनाथ हो गए हैं….. दो वक़्त की रोटी कैसे जुटाएंगे ….? जेल में बंद अपने माता पिता की नागरिकता कैसे सिद्ध करेंगे…..? उन के सामने यह सब से बड़ी समस्या है………
प्रजापती परिवार पर आये मुसीबतों ने हम सब के सामने एक बड़ा प्रश्न ला खड़ा किया है……? इस परिवार पर आये मुसीबतों का ज़िम्मेदार कौन है…….? दिनेश का अशिक्षित होना—- गरीब होना…..? या फिर सरकारी तंत्र की खामियां….. फैसला आप कीजिये.