श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ दिन-1; श्रीराम कथा की भागीरथी जन-जन को सिंचित करती है : साध्वी ऋतम्भरा
गुवाहाटी
वात्सल्य मूर्ति दीदी मा ऋतंभरा ने श्री राम कथा सत्संग समिति, गुवाहाटी के तत्वावधान में के गोहाटी गौशाला में आयोजित ‘श्रीराम कथा’ का सोमवार को शुभारंभ करते हुए कहा श्रीराम कथा की भागीरथी जन-जन को सिंचित करती है. बस श्रोता में कथा को श्रवण करने की व्याकुलता और आग होनी चाहिए। दीदी मा ने कहा कि राम्रचित की पोथी को अपने सर पर धारण करना बहुत कठिन है, ऐसे में रामचरित को जीवन में धारण करने का सामर्थ होना हुत जरूरी है। श्रीराम कथा उस छतरी सरीखी है जो हमें विषय-विकारों की बरसात से बचाती है। श्रीराम कथा वह दर्पण है जो हमारे भीतर के चित्त के दर्शन कराती है।
श्रीराम कथा के महत्त्व को रेखाक्रित करते हुए दीदी मा ने कहा बाकी सब व्यथा है श्रीराम की कथा ही कथा है। कथा वह जो चित्त को निर्मल कर दे, बिंदु को सिंधु बना दे, अशांत मन को शांत कर दे और मन को मानसरोवर बना दें। उन्होंने जहां एक ओर भारत के विराट स्वरूप का गुणगान किया बहीं दूसरी ओर मातृ शक्ती महता का बोध कराया। उन्होंने कहा कि गो-माता की चरणरज और ब्रहमपुत्र के तट पर जहा मा भवानी की कृपा बरसती हो वहा श्री गोहाटी गोशाला प्रांगण में श्रीराम कथा का श्रवण करना कम बड़ी सौभाग्य की बात नहीं है। भारत भूमि को देव भूमि से बड़ा बताते हुए दीदी मा ने कहा कि स्वर्ग में सारी सुविधाए तो हैं मगर रामलला नहीं है। भारत के हर एक व्यक्ति के जीवन का आधार ही आध्यात्मिकता है। इसीलिए भारत के मनीषियों ने भी स्वर्ग की कामना नहीं की, मोक्ष की चाहना की है। उन्होंने भारत को देवो की भूति बताते हुए कहा कि देवेश भी यहा अवतार लार आते हैं ।
कथा श्रवण कर रही मातृ शक्ती को उनकी अहमियत का भान कराते हुए दीदी मा ने कहा कि भारत एक हजार साल तक गुलाम रहा । हमारी दिल्ली गैरों के कब्जे में रही, लेकिन हम भारतीय आत्मा से कभी भी किसी के पराधीन नहीं रहे तो इसके पीछे मातृ शक्ती का खड़े होना था । भारत का आधार ही कुटुंब था जिसकी धूरी मा थी। समूचा कुटुंब माँ के आसपास घूमता था । लेकिन आज भारत की नारियों का मन भारतीय नहीं रहा । वह भी पुरुष बनने की होड़ में शामिल है।
दीदी मा ने कुछा बच्चों को यदि आया पालेगों तो उनको शिक्षा-संस्कार कौन देगा। आज मा मम्मी बन रही है और कामना करती है उसका बच्चा डाक्टर, इंजीनियर बने, लेकिन बेटे को अच्छा इंसान बनाने की सोच किसी के भी जेहन में नहीं आती। उन्होंने कहा कि बच्चों में मां-बाप के गुण-स्वभाव आते ही है। जेसे माता पार्वती में हिमराज़ दक्ष के गुणा आ गए थे जिससे माता अभिमानी हो गयी थी। कथा प्रसंग में उन्होंने शिव-पार्वती विवाह का भी जिक्र किया । बच्चों ने इस प्रसंग पर आधारित झांकी भी प्रस्तुत की।