असम का रियल टार्ज़न, जो टार्ज़न न होते हुए भी बन गया टार्ज़न
कार्बीएंग्लोंग
आपने अब तक टार्ज़न की कहानी पढी होगी या फिर टार्ज़न की फिल्म देखी होगी I लेकिन आज हम आप को असम के टार्ज़न के बारे में बताने जा रहे हैं I इस रियल टार्ज़न से आप मिल भी सकते हैं और बात चीत भी कर सकते हैं , क्योंकि यह फ़िल्मी टार्ज़न के तरह जंगली आवाज़ें नहीं निकालता बल्कि यह हमारी और आप की भाषा में बात चीत करता है I
इस टार्ज़न का ठिकाना है असम के वेस्ट कार्बीएंग्लोंग जिले का एक पहाड़ी गांव। यह टार्ज़न सामान्य जिंदगी गुजारता है। लेकिन लोग उसे सामान्य इसलिए नहीं मानते क्योंकि उसे कपड़ों से सख्त नफरत है। चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन वह कपड़े नहीं पहनता है ।
ऐसा नहीं कि उस के घर वालों ने उसे उसे कपडे पहनाने की कोशिश नहीं की I गावं वाले भी चाहते हैं की टार्ज़न गांव में कपड़े पहनकर आम युवकों की तरह घूमे फिरे लेकिन टार्ज़न को ये मंजूर नहीं। बरसों से ऐसी सारी कोशिश नाकाम होती रही है। अब तो उसकी उम्र भी तीस के पार हो गयी है।
ठंड का मौसम हो, झम झम बरसात हो रही हो, या फिर गर्म हवाएं चल रही हो, टार्ज़न को कोई फर्क नहीं पड़ता I अब तो आस पास के गांव के लोग भी उसे टारजन के नाम से बुलाते हैं, हालांकि मातापिता द्वारा दिया गया उस नाम ओंगबे है। लेकिन लोग उसे टार्ज़न के नाम से ही जानते हैं I
ओंगबे वेस्ट कार्बीएंग्लोंग जिले के छोटे से पहाड़ी गांव डेरा आरलोक में रहता है। लेकिन गांव की बस्ती से दूर पहाड़ के करीब बने एक बड़ी सी झोपड़ी में। जहां वह अपने मन के अनुसार जीवन गुजारता है। वह सामान्य लोगों से ज्यादा लंबा और हट्टा-कट्टा है। गांव के लोग बताते हैं कि टारजन में दूसरे लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा ताकत है।
असम का यह टार्ज़न शांतिप्रिय है। लोगों के साथ उठता बैठता है। उसके अपने खेत हैं। जहां वह खेती करता है। फसल उगाता है। अपने बाल बच्चों का पेट पालता है। वैसे उसके कपड़ा नहीं पहनने की सनक के चलते लोग उन्हें दिमागी तौर पर कुछ असंतुलित मानते हैं लेकिन जो भी उससे बात करता है, उसे लगता नहीं कि वह कहीं से ऐसा है।
टार्ज़न गांव में लोगों से मिलता जुलता है और उसकी इच्छा वहां शादी बारात और समारोहों में जाने की भी होती है लेकिन उसके सामने एक ऐसी शर्त रख दी जाती है कि वह मनमसोस कर रह जाता है और उधर रुख ही नहीं करता। ये शर्त होती है कपड़ा पहनकर आने की।