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अरुणाचल में क्यों और कहाँ होती है अफीम यानी नशे की खेती

MANZAR ALAM- TAWANGवाक्रो, अरुणाचल प्रदेश 

By Manzar Alam

Former Bureau Chief ( northeast ) , Zee News

अरुणाचल में हर वर्ष 200 टन से अधिक अफीम के खेती होती है. यहाँ एक हेक्टयर खेत में कम से कम 10 किलो अफीम मिल जाता है . यहाँ का एक व्यक्ती रोजाना कम से कम 4 से 5 ग्राम अफ़ीम का सेवन करता ह.

कानूनी तौर पर अफ़ीम की खेती के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जानेजाते हैं. लेकिन अरुणाचल प्रदेश में भी खुले आम अफीम कि खेती या यूं कहा जाए कि नशे की खेती होती है. अरुणाचल प्रदेश मेंअफ़ीम की खेती सब से अधिक लोहित, तिराप, चांगलांग और अनजाव जिलों में होती है. इन जिलों में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जो अफ़ीम की खेती  नहीं करता हो.

इतनेबड़े पैमाने पर अफ़ीम की खेती का एक कारण बेरोजगारी भी है. इन जिलों में लोगों के पास न तो नौकरी है और न ही खेती करने के लिए ज़मीन और सुविधा. बहुतों को तो यह भी नहीं मालूम की अफ़ीम की खेती करना अवैध है. वोह तो केवल इतना जानते हैं की उन के पास दो वक़्त की रोटी, बीमार का इलाज और अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अफ़ीम की खेती करने के अलावा और कोइ दूसरा रास्ता नहीं है. उन्हें न तो कानून की पूरी जानकारी है और न ही क़ानून का डर ऐसा कहना है लोहित निवासी सिंघ्याम नमाम का जो पहले धड्ले से अफीम कि खेती किया करता था.

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लोहित के ही रहने वाले डॉक्टर सोतिलम नईल कहते हैं कि “जितने बड़े पैमाने पर अरुणाचल प्रदेश में अफ़ीम की खेती की जाती है उतना ही उस का सेवन भी किया जाता है. सूत्रों की माने तो अरुणाचल में एक हेक्टयर खेत में कम से कम 10 किलो अफीम मिल जाता है. और यदी कुल पैदावार की बात करें तो यह आंकड़ा कम से कम 200 टन से अधिक है. उसी तरह यहाँ का एक व्यक्ती रोजाना कम से कम 4 से 5 ग्राम अफ़ीम का सेवन करता है जितनाकि देशभर में और कहीं नहीं होता.अफ़ीम के सेवन अकरने से रोकने के लिए यहाँ चलाए जाने वाले जागरूकता अभियानभी कोई मायने नहीं रखता”.

  • यदी आंकड़ों पर नज़र डालें तो अरुणाचल प्रदेश में
  • वर्ष 2012–13 में 299 एकड़ अफ़ीम की खेती नष्ट की गई तो
  • वर्ष 2013—14 में1002 एकड़ और
  • वर्ष 2014—15 में 335 एकड़ अफीम की खेती को नष्ट किया गया.

ऐसी बात नहीं कि अरुणाचल प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर अवैध रूप से हो रहे अफ़ीम की खेती की रोक थाम के लिए सरकार द्वारा कोइ क़दम नहीं उठाया जाता है. मार्च और अप्रेल के महीने में जब भी अफ़ीम की खेती का कटाई का समय आता है तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारी उसे नष्ट करने के लिए इन इलाकों का दौरा करते हैं. लेकिन उन्हें स्थानीय लोगों का ज़बरदस्त विरोध का सामना करना पड़ता है.

नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो के एक अधिकारी के अनुसार  लोहित और अनजाव  में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जब भी उन की टीम अफीम की अफीम की अवैध खेती को नष्ट करने जाती है तो उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, स्थानीय लोग सड़कों पर टायर जला कर सड़क जाम कर देते हैं . कभे कभे उन से  निपटने के लिए बल  काभी प्रयोग करना पपड़ता है.

एक अंदाज़े के मुताबिक़ इन चारा जिलों में हर वर्ष डेढ़ से दो सौ टन अफ़ीम की खेती होती है. यहाँ का हर व्यक्ती एक दिन में कम से कम चार से पांच ग्राम अफ़ीम का सेवन करता है. इतने बड़े पैमाने पर शायद ही किसी और प्रदेश में अफीम की खेती होती है. लेकिन मजबूरी यह है की सरकार के पास न तो कोइ ठोस नीती है औ न ही जिला प्रशासन इसे रोक पाने में सफल हो रहा है.

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