नई दिल्ली / गुवाहाटी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदश में एनआरसी नवीनीकरण प्रक्रिया में शामिल होने के लिए पंचायती दस्तावेजों को मानी करार दिया है , जिस से असम सरकार को तो बड़ा झटका लगा ही है नेआरसी प्रक्रिया में कोर्ट का यह फैसला बहुत अहम साबित होने वाला है I
पंचायत सचिव या अधिशासी मजिस्ट्रेट की ओर से जारी सर्टिफिकेट को भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र माना जा सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उस व्यक्ति की वंशावली किसी भारतीय नागरिक से स्थापित हो। माना जा रहा है कि असम में अवैध आव्रजकों की पहचान के सिलसिले में अदालत का यह फैसला बहुत अहम साबित होने वाला है।
जस्टिस रंजन गोगोई और आरएफ नरिमन की खंडपीठ ने मंगलवार को गुवाहाटी हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया जिसमें नागरिकता के लिए दावा करने वाले इन सर्टिफिकेट को अवैध बताया गया था। सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि ग्राम पंचायत के सचिव की ओर से जारी सर्टिफिकेट नागरिकता का सुबूत तभी हो सकता है जबकि उसके साथ उसके परिवार की वंशावली का भी विस्तृत ब्योरा हो।
विगत 22 नवंबर को सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ग्राम पंचायत की ओर से जारी निवासी होने का सर्टिफिकेट नागरिकता का दस्तावेज नहीं है। नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) के संदर्भ में इसका कोई अर्थ नहीं अगर इसके समर्थन में कोई अन्य वैध दस्तावेज न लगाया जाए।
उल्लेखनीय है कि नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) का मसौदा 31 दिसंबर को प्रकाशित किया जाना है। यह रेजिस्टर का मकसद असम में अवैध आव्रजकों की पहचान करना है। सीमावर्ती राज्य असम में कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 48 लाख लोगों ने ग्राम पंचायत के सचिवों की ओर से जारी सर्टिफिकेट के दम पर ही नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) में अपना नाम दर्ज कराने के लिए दावा किया है।