नागरिकता संशोधन बिल 2016 का विरोध कर रहे छात्र संगठन NESO, AASU और अन्य 30 संगठनों ने 8 जनवरी को असम सहित पूरे नार्थईस्ट में 11घंटे बंद का आह्वान किया है.
गुवाहाटी
नागरिकता संशोधन विधयक 2016 के विरोध में नार्थईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन यानी ( NESO ) और अखिल असम छात्र संगठन ( AASU ) और तीस अन्य जनजातीय संगठनों ने 8 जनवरी को पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में 11घंटे का बंद का आह्वान किया है. बंद सुबह 5 बजे से शाम 4 तक जारी रहेगा.
NESO के सलाहकार डॉ समुज्वल भट्टाचार्य ने मीडिया को बताया कि सिल्चर रैली में प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित करते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर जो घोषणा की, वह यह दिखाता है कि प्रधानमंत्री बांग्लादेशियों के हितैषी हैं .
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के सिल्चर में 4 जनवरी को एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 को लेकर केंद्र सरकार बांग्लादेश में रह रहे हिन्दू बांग्लादेशियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और बांग्लादेश में सताए और पीड़ित हिन्दुओं को भारत सरकार भारत में शरण देने के लिए प्रतिबद्ध है. इसके लिए केंद्र सरकार जरूरी कदम कदम उठा रहे हैं ताकि सदन के पटल पर जल्द से जल्द नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित किया जा सके.
प्रधान मंत्री के इस भाषण के बाद असम और उत्तर पूर्व के राज्यों के छात्र संगठनों पर व्यापक असर डाला है. इसी के परिणामस्वरूप अब अखिल असम छात्र संगठन और नॉर्थईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन एक साथ 8 जनवरी को पूरे नॉर्थईस्ट में बंद का आह्वान किया है.
गौरतलब है कि इस मसले को लेकर केंद्र सरकार ने भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल के अध्यक्षता में जेपीसी भी गठित किया है, पर जेपीसी में शामिल कांग्रेस के नेता सांसद भुवनेस्वर कलिता और सुस्मिता देब पर विधेयक के संशोधन में हर बार व्यावधान डालने का आरोप भाजपा की ओर से लगा है. ये संशोधन बिल अफगानिस्तान, पकिस्तान और बांग्लादेश में निवास कर रहे 6 अल्पसंख्यक समुदाय सिख, हिन्दू, बुद्ध, ईसाई, जैनी और पारसियों को भारत में नागरिकता देने के हक़ दिलाता है. बशर्ते ये अल्पसंख्यक दंगा, अत्याचार के कारणवश भारत में शरण लेते हुए 6 वर्ष तक भारत में रह जाते हैं तो भारतीय नागरिकता पाने के हक़दार बन जाएंगे. ये संशोधन 2014 तक भारत में शरण लिए यह तमाम 6 शरणार्थी समुदायों पर लागु है.
आसू और असम गण परिषद् इस विधयक का विरोध करते हुए यह तर्क दे रहे हैं कि जिस तरह त्रिपुरा में त्रिपुरी आदिवासी नागरिक दुसरे दर्जे का नागरिक बन गए और हिन्दू बांग्ला भाषियों ने सत्ता और समाज का बागडोर छीन लिया, उसी प्रकार असम में भी हिन्दू बांग्लादेशियों शरणार्थियों को नागरिकता दे देने से असमिया संस्कृति और समाज का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.
बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून 1955 के 19 जुलाई में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान बना था और उस एक्ट के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में शरण लिए 6 अल्प्संक्यक समुदायों को भारत में 11 वर्ष के शरणकाल के बाद भारतीय नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान पहले से ही मौजूद है.