गुवाहाटी
By Manzar Alam, Founder Editor, NESamachar, Former Bureau Chief( Northeast ) Zee News
कहते हैं कि भारत रहस्यों और आश्चर्यों का देश है। यहां धर्म के नाम पर आज भी कई ऐसी विधाओं का पालन किया जाता है जो अपने आप में अनूठी है . विज्ञान के इस दौर में आज भी यहाँ इंसान आस्था के नाम पर अंधभक्ति में डूबा है. इस बात का अंदाजा चड़क पूजा के shocking video और तस्वीरों को देख कर लगाया जा सकता है जिसे देखने के बाद आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे..
पहला बैशाख के मौके पर देश के विभिन राज्यों में चड़क पूजा मनाया जाता है. जिस में झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, और त्रिपुरा ख़ास हैं. अलग अलग जगहों में पूजा मनाने का अपना अलग रिवाज और परम्परा है.
असम में चड़क पूजा डिब्रूगढ़, नागांव, सिलचर, और धुबड़ी में धूम म धाम से मनाया जाता है लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से. इस पूजा में 3 दिन पहले क्षेत्र महिलाएं उपवास रखती है और पहला बैशाख के दिन धधकते अंगारों के बीच नंगे पैर चलकर अग्नि परीक्षा देती है. इतना ही नहीं 25 फीट की ऊंचाई पर हुक के सहारे लटककर पुरुष भी भक्ति रस में डूबकर इस कठिन परंपरा को निभाते हैं. भगवन शिव को संतुष्ट करने के लिए यहां मानव चरक भी बनते हैं. इनकी पीठ पर लोहे के हुक फंसाकर इन्हें रस्सी से घुमाया जाता है. ज्ञात हो कि ये बड़ा रिस्की होता है और इसमें व्यक्ति की जान तक जा सकती है. वैसे इनका मानना है कि ऐसा करने से सालों भर इन्हें किसी रोग या दुख का सामना नहीं करना पड़ता है. अब आप इसे आस्था कहे या अंधभक्ति .
Watch Shocking Video
झारखंड में चड़क पूजा को नील पूजा के नाम से भी जाना जाता है. इस पूजा में भगवान शिव की आराधना की जाती है. वास्तव में यह पर्व पौराणिक पर्व है जिसमें भगवान शिव को खुश कर अपने गाँव, परिवार और राज्य की सुख समृद्धि हेतु लम्बे काठ के ऊपर रोले लगा कर भगत स्वयं ऊपर झूलते हैं. फिर झूलकर चारों तरफ परिक्रमा करते हैं. भगवान शिव को समर्पित इस पूजा के विषय में यहां के लोगों का मानना है कि इस पूजा के बाद भगवान सारे दुखों को दूर करके समृद्धि, यश वैभव और खुशहाली से भर देते हैं। वास्तव में इस पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना ह. इस दौरान क्षेत्र के लोग अलग-अलग गावों में जाकर तेल, नमक, शहद, चावल और पैसे लेकर आते हैं. इन सभी का इस्तेमाल भगवान शिव को सजाने के लिए किया जाता है.
पश्चिम बंगाल में इसे चरक पूजा कहते हैं जो बड़ी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. यह पर्व बंगाली नववर्ष के एक दिन पहले आयोजित होती है. पर्व में शिव भक्त गेरुवा वस्त्र धारण कर सुबह से नील पाठ को अपने सिर पर लेकर नृत्य करते हुए दुकानों में घरों में भीक्षा मांगते हैं. यह नजारा कापसी, पखांजुर, बांदे आदि क्षेत्रों में देखा जा सकता है. सिलीगुड़ी में ‘चरक पूजा’ के दौरान साधक तंत्र-मंत्र वर्षों से करते आ रहे हैं. इसके लिए रात के समय खुले मैदानों मेला लगता है और इस मेले में साधक नर कंकाल खोपड़ी-हड्डियों के साथ रोंगटे खड़े करनेवाले करतबों का प्रदर्शन करते हैं.
अन्य पर्व-त्योहारों के तरह की चरक पूजा का बंगाल में काफी अहमियत है. इस पूजा में बांग्ला नववर्ष के पूर्व संध्या पर सूर्य अस्त होते ही साधक खूले मैदानों में इकट्ठे हो जाते हैं और देर रात तक तंत्र-मंत्र की साधना करते हैं. साथ ही तंत्र-मंत्र के बल पर नर कंकाल खोपड़ी-हड्डियों के साथ और शरीर पर लोहे के धारदार हथियार गोदकर रोंगटे खड़े करनेवाले करतबों का प्रदर्शन करते हैं.