असम: हिमा दास खेल जगत की ‘ उड़न परी ‘
असम के धान के खेतों से चलकर अंतरराष्ट्रीय मैदान पर हवा को चीरती हुई दौड़ने वाली एथलीट हिमा दास अब खेल जगत में ‘उड़न परी’ के नाम से मशहूर होने लगी है.
गुवाहाटी
18वें एशियाई खेलों में भारत की युवा धावक हिमा दास ने महिलाओं की 400 मीटर रेस सिल्वर मेडल अपने नाम किया. फाइनल रेस में उन्होंने 50.79 सेकेंड के समय निकाला. हिमा ने शानदार दौड़ लगाई, पर वो गोल्ड मेडल जीतने से चूक गईं. एशियन गेम्स में अपनी पहली ही मौजूदगी में उन्होंने पदक जीतने का कारनामा किया. यकीनन अब उनकी गिनती टॉप एथलीटों में होने लगी है.
18 साल की हिमा ने 2016 में एथलेटिक्स की शुरुआत की थी. इससे पहले वो फुटबॉल खेला करती थीं. हिमा के स्कूल के फिजिकल टीचर को लगता था कि फुटबॉल उनके करियर के सही नहीं है. इसलिए उन्होंने शारीरिक तौर पर मजबूत हिमा को एथलेटिक्स में करियर बनाने की सलाह दी. टीचर की सलाह रंग लाई और आज वह देश को मेडल दिला रही हैं.
किसान परिवार से है हिमा
हिमा का जन्म असम के नवगांव जिले के कांदुलिमारी के एक किसान परिवार में हुआ. पिता रंजीत दास के पास दो बीघा जमीन है और मां जुनाली घरेलू महिला हैं. जमीन का यह छोटा सा टुकड़ा ही छह सदस्यों के परिवार की आजीविका का साधन है. उनके माता- पिता की जिंदगी संघर्षों से भरी रही है. हिमा चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनकी दो छोटी बहनें और एक भाई है. एक छोटी बहन दसवीं कक्षा में पढ़ती है, जबकि जुड़वां भाई और बहन तीसरी कक्षा में हैं. हिमा खुद अपने गांव से एक किलोमीटर दूर स्थित ढींग के एक कालेज में बारहवीं की छात्रा है.
वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप में दिखाई जलवा
हिमा दास ने जुलाई में फिनलैंड में आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में गोल्ड मेडल चुकी है. हिमा ने राटिना स्टेडियम में हुए फाइनल में 51.46 सेकेंड का समय निकाला कर इतिहास रचा था. वह महिला और पुरुष दोनों वर्गों में ट्रैक स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं. हिमा के पिता की मानें तो वह बहुत जिद्दी हैं. एक बार कुछ करने की ठान लें, तो वो किसी की नहीं सुनती हैं. उनका यही जज्बा उन्हें कामयाबी के शिखर पर पहुंचा रहा है. जमैका के उसैन बोल्ट उनके हीरो हैं, उन्हें गाने सुनना और डांस करना बेहद पसंद है.