मास्टरजी नागेन्द्र शर्मा नहीं रहे
Guwahati
By Ravi Ajitsariya
गोलाघाट के मूल निवासी मास्टरजी के नाम से प्रसिद्ध, शिक्षक, लेखक, नाटककार और पत्रकार नागेन्द्र शर्मा अब इस दुनिया में नहीं रहे l खबर विचलित करने वाली थी l पर नियति को जो मंजूर था, उसके आगे मनुष्य क्या कर सकता है l मेरा उनसे सम्पर्क आज से दस वर्षों पहले हुवा, जब उन्होंने मेरे एक लेख के उपर अपनी टिपण्णी भेजी और मुझे बधाई दी l दूरभास पर उनका स्वर आज भी मुझे याद है, उनके स्वर में एक ठहराव था, मनो कोई योगी एक विषय पर तर्क शास्त्र प्रस्तुत कर रहा हो l उस दिन के पश्चात, हमारी अक्सर सामाजिक विषयों पर बातचीत होती रही l उनके नहीं रहने से, यह कमी खलेगी कि कोई एक जन ऐसा भी था, जो अपनी बात बेबाक रखता था, मेरे विचारों पर असहमति भी प्रकट करता था l उनके जिन्दा रहते हुए, उनके बारे में, चाह कर भी अपनी कॉलम नहीं लिख पाया, जिसका मुझे हमेशा मलाल रहेगा l वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे l मास्टरजी ने हमेशा से ही अपनी बातें पूरी प्रमाणिकता के साथ लिखी l जब वे नाटक लिखते थे, तब नाटकों के पात्र एतिहासिक होतें थे, जिनकी प्रस्तुती इतनी सरल होती थी कि कोई भी उन्हें समझ सकता था l जब वे निबंध लिखते थे, तब अपनी पूरी ताकत उस निबंध में झोंक देते थे l बिना कोई लाग-लपट के, बस लिख डालना l सामाजिक विषय पर जब उनसे तर्क-वितर्क होता था, तब वे कहते थे कि तुम आज के युग के लड़के हो, तुम बड़े भाग्यशाली हो , हमने वह जमाना देखा है जब समाज में पर्दा प्रथा और तमाम ऐसी प्रथाएं थी जिससे मनुष्य का पूरा जीवन इन प्रथाओं को मानाने में ही चला जाता था l एक प्रगतिशील विचारधारा के मुनुष्य, जिन्होंने अपन पुरा जीवन शिक्षा के प्रसार में लगा दिया, जिन्होंने समाज में लोगों से अनुशासन, शिक्षा और भाषा सीखने की हमेशा वकालत की, ऐसे पुरुष के लिए, सम्मान और पुरस्कार मट्टी के बराबर थे, जिन्होंने कभी भी नाम के लिए कार्य नहीं किया l हिंदी और असमिया के बीच उन्होंने हमेशा से एक सेतु का कार्य किया l ना जाने कितने ही अनगिनत असमिया लेखों को हिंदी में अनुवाद कर के प्रकाशित करवाया था l 30 नवम्बर 1940 को राजस्थान के रतनगढ़ में जन्मे मास्टरजी ने, अपनी प्राथमिक शिक्षा रतनगढ़ में पूरी करने के पश्चात, अपने बाल्यकाल से ही गोलाघाट को अपनी कर्मभूमि बनाई, 1960 में गोलाघाट टाउन हिंदी हाई स्कूल से मेट्रिक, जोरहट से 1965 में स्नातक और फिर बीएड l हाई स्कूल के शिक्षक के रूप में नियुक्ति के पश्चात उन्होंने खुले मन से लेखन का कार्य शुरू किया और हिंदी और असमिया में कई नाटक लिखे और मंचन भी करवाएं l मारवाड़ी सम्मलेन कि गोलाघाट शाखा के वे मंत्री और अध्यक्ष भी रहे l पूवोत्तर मारवाड़ी सम्मलेन में उन्होंने जयदेव खंडेलवाल के साथ उनकी कार्यकारिणी में संयुक्त मंत्री के रूप में कार्य भी किया l मारवाड़ी युवा मंच के वे सलाहकार भी थे l उन्होंने अपने सिद्धांतो के साथ कभी भी समझोता नहीं किया l जब वे सन 1985 में सामंत ज्योति नामक असमिया साप्ताहिक पत्र निकाल रहे थे, तब उन पर तमाम सरकारी बंदिशे लगाई गई, पर उन्होंने दो वर्षों तक लगातार पत्र का प्रकाशन जारी रखा, और विचारों से समझोता नहीं किया l हालाँकि, बाद में उन्होंने उस पत्र का प्रकाशन बाद में बंद कर दिया था l गोलाघाट प्रेस क्लब के वे दो बार अध्यक्ष रहे l उन्होंने असमिया से हिंदी अनुवाद में एक बड़ी भूमिका निभाई थी l जोनाकी युग के चंद्रप्रकाश अगरवाला की डायरी, अनुराधा शर्मा पुजारी के कहानी संग्रह और गोलाघाट के साहित्यकार केशव सैकिया की कहानी संग्रह’होरु-होरु मनुह’ आदी किताबो का हिंदी अनुवाद किया l उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में पत्रकार के रूप में भी कार्य किया, जिसमे सन्मार्ग, सैनिक विश्वमित्र, टाइम्स ऑफ़ इंडिया आदि राष्ट्रिय अखबार प्रमुख थे l उन्होंने गुवाहाटी से प्रकाशित अख़बारों में नियमित लेख लिखे है l असम में उस समय फैले हुए उग्रवाद पर उन्होंने हमेशा से अपनी बेबाक राय रखी थी, और उनसके कारण और निवारण पर परिचर्चा भी करवाई थी l एक सरल जीवन जीते हुए, वे सामजिक एकजुटता के पक्षधर रहे l सामाजिक प्लेटफार्म पर हास्य नाटकों के मंचन में वे अपने परिवार के सदस्यों को भी शामिल कर लेते थे l पिछले पांच वर्षों से स्वस्थ कारणों से वे अपने लड़के के साथ गुवाहाटी आ कर रहने लगे थे l उनकी पत्नी सावित्री देवी और दो लड़कियां कविता, संचिता और एक लड़का संजय ने उनका हमेशा से हर कार्य में साथ दिया है l हाल ही संपन्न उनकी शादी की पच्चासवी सालगिरह पर उनके बच्चों के एक भव्य कार्यकम रख कर उनके आशीर्वाद लिया था l
उनके गमन से समाज में एक स्थान रिक्त हो गया है l उनके आत्मा की सद्गति की प्रार्थना करतें हुए, यह कामना करता हूँ कि वे जहाँ भी रहंगे, हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे l