असम सरकार द्वारा विदेशी नागरिकों को हिरासत में लेकर परिजनों से अलग रखने को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और नाराजगी जताई .
नई दिल्ली
असम सरकार द्वारा विदेशी नागरिकों को हिरासत में लेकर परिजनों से अलग रखने के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है. शीर्ष अदालत ने असम सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि इस मुद्दे पर तत्काल गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ताकि किसी का परिवार न टूटे. न्यायाधीश मदन बी लोकूर और दीपक गुप्ता की पीठ ने प्रदेश सरकार को यह निर्देश दिया .
असम की ओर से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता को शीर्ष अदालत ने कहा कि आप इस तरह से एनआरसी सूची से बाहर असम में रहने वाले लोगों को उनके परिजनों से अलग नहीं रख सकते.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अधिवक्ता गौरव अग्रवाल की ओर से पेश तथ्यों पर पर गौर करते हुए कहा कि नजरबंद किए गए इन लोगों को परिवारों से अलग नहीं किया जा सकता है. एएसजी तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि नजरबंद लोगों के साथ परिजनों को नहीं रखा जा सकता था. हिरासत केंद्र में परिजनों के लिए आवश्यक इंतजाम किए जा सकते हैं, लेकिन ये इंतजाम स्थान की उपलब्धता के अधीन होंगे.
शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने राज्य से हिरासत केंद्र में गैस सिलेंडर समेत अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है. इस मामले में केंद्र की ओर से अदालत में पेश हुए एएसजी एएनएस नादकर्णी ने अदालत को बताया कि पूरे देश में विदेशियों को हिरासत केंद्र में रखने को लेकर वे एक नियमावली को अंतिम रूप देने पर काम कर रहे हैं.
संविधान पीठ ने इसपर सरकार से कहा कि वह नियमावली को अतिशीघ्र तैयार करे. एएसजी तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि असम के गोलापाड़ा जिले में हिरासत केंद्र के निर्माण के लिए जमीन आवंटित की गई है. साल भर में काम पूरा होने की उम्मीद है. असम में हिरासत केंद्र के निर्माण के लिए 46.51 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई है.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में तैयार एनआरसी के अंतिम मसौदे को 30 जुलाई को जारी किया गया था. एनआरसी मसौदा जारी होने के बाद असम में 40 लाख अवैध करार दिए गए थे. अब इन्हीं लोगों को सरकार ने हिरासत में लेने का शुरू कर दिया है. लेकिन इसको लेकर समुचित नियमावली न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट को फिर से दखल देना पड़ रहा है.