असम- Bodoland University बंद, ST फैसले पर उबाल
असम कैबिनेट द्वारा छह गैर-बोडो समुदायों को ST दर्जा देने की मंजूरी के बाद बोडोलैंड यूनिवर्सिटी में छात्रों का व्यापक विरोध, परीक्षाएँ बहिष्कृत।

कोकराझार- देबरगांव स्थित बोडोलैंड यूनिवर्सिटी Bodoland University बुधवार को व्यापक तनाव फैल गया जब बोडोलैंड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (BUSU) और कई बोडो जनजातीय संगठनों से जुड़े छात्रों ने विश्वविद्यालय का मुख्य द्वार बंद कर दिया और तीसरे सेमेस्टर की परीक्षाओं का बहिष्कार किया। यह विरोध असम कैबिनेट द्वारा छह गैर-बोडो समुदायों—ताई अहोम, आदिवासी (टी ट्राइब), मोरन, मटक, चुटिया और कोच-राजबंशी—को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की हालिया मंजूरी के खिलाफ था।
प्रदर्शनकारी “स्वदेशी बोडो अधिकारों का हनन नहीं” और “अनुच्छेद 371(B) तथा BTC समझौता की रक्षा करो” जैसे नारे वाले बैनर थामे हुए थे। उनका कहना था कि इन छह समुदायों को ST सूची में शामिल करने से बोडोलैंड टेरिटोरियल रिजन (BTR) में बोडो और मैदानी जनजातियों के वर्तमान आरक्षण हिस्से पर गंभीर असर पड़ेगा।
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BUSU के एक छात्र नेता ने दावा किया कि ये छह समुदाय जनसंख्या के लिहाज़ से बड़े और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। “ये मिलकर असम की करीब 27% आबादी यानी लगभग 90 लाख लोग हैं। यदि इन्हें ST दर्जा मिला, तो बोडो जैसी जनजातियाँ आरक्षण ढांचे में अल्पसंख्यक बन जाएँगी,” उन्होंने कहा।
विरोध के चलते पूरे दिन कक्षाएँ और प्रशासनिक कार्य बंद रहे। किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए कैंपस में भारी सुरक्षा तैनात रही। BTR के अन्य हिस्सों—कोकराझार, चिरांग, बाक्सा और उदालगुड़ी—से भी इसी तरह के प्रदर्शनों की खबरें मिलीं, जो क्षेत्र में व्यापक असंतोष को दर्शाती हैं।
उधर, सरकार का कहना है कि इस प्रस्ताव ने सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया है और जब मामला केंद्र सरकार के पास जाएगा, तो मौजूदा ST समुदायों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा। विवादित रिपोर्ट को गुरुवार को असम विधानसभा में रखा जाएगा, जिसके बाद इसे गृह मंत्रालय और रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया को भेजा जाएगा।
मंज़ूरी की अंतिम प्रक्रिया के बाद इसे संविधान (अनुसूचित जनजातियाँ) आदेश, 1950 के तहत शामिल किया जा सकता है।
यह निर्णय उन छह समुदायों के लंबे समय से चले आ रहे आंदोलन के बाद सामने आया है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक हाशिए पर होने का तर्क देकर ST दर्जा मांग रहे थे।
समर्थकों का कहना है कि ST सूची में शामिल होने से उन्हें संवैधानिक सुरक्षा, आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा, जो OBC श्रेणी के तहत उपलब्ध नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम असम की पहचान-आधारित राजनीति और चुनावी समीकरणों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है।







