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आज “टैटू” फैशन का प्रतीक बन गया है, लेकिन कभी यह योद्धाओं का प्रतीक हुआ करता था

by Ajit Jaiswal/nesamachar.in

कभी टैटू गुदवाना दुश्मन का सिर काटकर लाने वाले योद्धाओं का प्रतीक था, लेकिन अब यह फैशन का प्रतीक बन गया है. पूरे भारत में शहरी फैशन बने टैटू ने नगालैंड में अपना सदियों पुराना आकर्षण धीरे धीरे खोता जा रहा है,  जहां कभी चेहरे पर टैटू गुदवाना दुश्मन का सिर काटकर लाने वाले योद्धाओं का प्रतीक हुआ करता था।

Arunchal Tatooनगा शोधकर्ता फेजिन कोन्याक का कहना है कि टैटू गुदवाना सदियों से एक जनजातीय परंपरा रही है, जिसे अब आधुनिकता के आगमन के चलते मोन जिले की कोन्याक जनजाति ने लग भाग पूरी तरह त्याग दिया है। फेजिन के अनुसार टैटू गुदवाना कभी  जनजातीय परंपरा का हिस्सा था जो जीवन में आपकी उपलब्धियों को दर्शाने के लिए होता था। योद्धा यदि दुश्मन का सिर काटकर लाते थे तो उनके चेहरे पर गोदना गोदकर उन्हें पुरस्कृत किया जाता था। किसी अन्य को चेहरे पर टैटू बनवाने की अनुमति नहीं थी। शरीर के अन्य हिस्सों पर टैटू पुरूषों के लिए बचपन से बड़े होने तक की यात्रा तथा महिलाओं के लिए शादी, मां बनने जैसे जीवन चक्र को दर्शाने का जरिया होता था।

टैटू सिर काटकर लाने और जनजातीय संस्कृति से इतनी गहराई से जुड़ा था कि सिर काटकर लाने की प्रथा खत्म होने और गांवों में ईसाइयत फैलने के साथ कला भी लुप्त हो गई। खुद जनजातीय समुदाय से संबंध रखने वाली फेजिन का कहना है कि ‘अब पारंपरिक टैटू कलाकार नहीं बचे हैं और न ही कोई उनकी सेवा लेता है।’

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