HealthLIFESTYLE

डायबिटीज और हमारे पांव

by Dr. Sudhir Kumar Jain

MS, Phd Diabetic Foot Surgeon

पांव की आयटन – क्यों और कितनी घातक?

पांव में आयटन और गोखरू बनना आम बात है| यह आमतया पांव के तलवे में उन जगहों में बनती है, जहाँ चलने-फिरने या खड़े रहने के वक्त ज्यादा दवाब पड़ता है या घर्षण होता है| यदि हमारा काम ज्यादातर कड़ी सतह पर नंगे पांव चलने-फिरने या खड़े रहने का है तो आयटन बनना स्वाभाविक है| सामान्यतया यह पैर के अग्रिम हिस्से में जैसे अंगूठे या अंगुलियों और तलवे के संगम स्थल और एड़ी में ज्यादा बनती है| तलवे के मध्य हिस्से में यह नहीं बनती क्योंकि इस हिस्से का संपर्क खड़े या चलने-फिरते वक्त सतह से नहीं होता है|

आयटन वस्तुतः प्रकृति की देन है और इसका मकसद पैर के अंदर के अवयवों या तंतुओं को सुरक्षा देना है| एक स्वस्थ मनुष्य के पांव में आयटन यदि बनती है तो चलते-फिरते वक्त दबाव और घर्षण की वजह से इसमें दर्द होता है, अतः व्यक्ति अपने पांव को इस कदर रखने लगता है कि आयटन वाले हिस्से में दबाव न पड़े| इससे आयटन की और अधिक बढ़ने की संभावना कम हो जाती है|

अब आइए एक डायबिटीज मरीज में आयटन की समस्या के बारे में चर्चा करें| ऐसे व्यक्ति का पांव आमतया स्नायु दुर्बलता की वजह से कमोबेश विकृत हो जाता है, जैसे सपाट तलवा, मुड़ी हुई अंगुलियाँ आदि| इसके साथ पांव की संवेदनशीलता भी कम हो जाती है तथा पांव और जोड़ों का लचीलापन कम जाता है| चमड़ी भी सूखी हो जाती है| अब यदि यह व्यक्ति पांव पर वजन डालता है तो तलवे का वह हिस्सा जो विकृत, संवेदनहीन, सूखा तथा कम लचीला है, सबसे अधिक दबाव में आ जाता है, इससे इस हिस्से में आयटन या कार्न बनकर तेजी से बढ़ने लगते हैं| संवेदनहीनता की वजह से मरीज को कोई दर्द नहीं होता और मरीज बेखबर आयटन वाली जगह पर लगातार वजन देकर चलता रहता है| इससे जल्द ही आयटन की गहराई और चौड़ाई बढ़ने लगती है| कुछ ही दिनों में यह कड़ी आयटन तलवे के अंदरूनी तंतुओं जैसे – चर्बी, मांस, हड्डियों को चुभती हुई इनमें टूट-फूट आरंभ कर देती है| फलस्वरूप जो खून या जलीय पदार्थ रीसता है वह आयटन के अंदरूनी हिस्से में जमा होने लगता है| अंततः यह आयटन एक फफोले का रूप ले लेती है और फटकर घाव बना देती है| जैसे ही चमड़ी फटती है, इसमें गंदगी और बीजाणु प्रविष्ट हो जाते हैं तथा संक्रमण आरंभ हो जाता है|

यदि हम और सहज तरीके से आयटन से हुए पैर के नुकसान को समझना चाहें तो हम यह कह सकते हैं – मान लें कि आयटन एक कड़ा पत्थर है जो हमारे पांव के तलवे में चिपका हुआ है| अब यदि हम इस चिपके हुए पत्थर के साथ चहलकदमी करें तो यह पत्थर रुपी आयटन हमारे पांव के अंदरूनी तंतुओं को भी चोट पहुंचा कर नष्ट कर सकती है| पत्थर जैसे चुभता है, आयटन भी वैसे ही चुभती है, किंतु संवेदनहीन पांव इसको महसूस नहीं कर पाता|

गोखरू, आयटन का छोटा रूप है| यह एक नुकीली आकार की होती है जो दर्द करा सकती है| हालांकि डायबिटीज रोगी को इसका अहसास नहीं होता है| यह तलवे के अन्य हिस्सों, जैसे – अंगुली, एड़ी आदि जगह पर भी हो सकती है|

अब यह तो स्पष्ट हो गया कि आयटन एक संवेदनहीन डायबिटीज रोगी के पांव में घाव या संक्रमण का प्रारंभिक रूप है| अब आइए यह जानें कि इसको होने से कैसे बचें या हो जाए तो क्या करें?

इससे बचने का उपाय है – नरम जूते या चप्पल का सदैव इस्तेमाल करें| विकृत पांव के लिए विशेषज्ञ की राय पर अपने पांव का नाप देकर विशेष जूते या चप्पल बनवाकर इस्तेमाल करें| ऊँची एड़ी की चप्पल न पहनें| डायबिटीज को नियंत्रित करें| चमड़ी को सूखने न दें, इसके लिए क्रीम या तेल का इस्तेमाल करें| सदैव अपने पांव के तलवे को अपने हाथों से स्पर्श करके देखें| यदि कहीं कड़ापन आ रहा हो तो विशेषज्ञ से राय लें|

यदि आयटन बन जाए तो स्वयं चिकित्सा जैसे – ब्लेड से काटना, कार्न केप इस्तेमाल करना आदि न करें| आयटन जो ज्यादातर सफेद नजर आती है, यदि अपना रंग बदलने लग जाए जैसे लाल या काली नजर आए तो समझ लें कि इसका प्रभाव पांव के अंदरूनी तंतुओं पर पड़ने लगा है| इस स्थिति में तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लें|

विशेषज्ञ के लिए प्रारंभिक अवस्था की आयटन हटाना बिलकुल सहज है और मिनटों में इसको सावधानी से बिना एनीस्थेसिया के हटाया जा सकता है| हाँ यदि इसका प्रभाव भीतरी तंतुओं पर पड़ चुका हो और आयटन में खून या अन्य तरल पदार्थ जमा हो गया हो तो मामला कुछ पेचीदा हो जाता है|

ज्ञात रहे, आयटन का पांव में बनना एक डायबिटीज रोगी के लिए घाव या संक्रमण होने के खतरे की घंटी है| यदि इसका समय रहते सही इलाज हो जाए तो मरीज का पांव संक्रमण और कटने से बच सकता है| आइए, आज से हम अपने पैरों के प्रति जागरूक हों| किसी भी खतरे के संकेत को नजर अंदाज किए बगैर, विधाता की इस अनमोल भेंट (हमारे पांव) को सहेज कर रखने की प्रतिज्ञा करें|

WATCH VIDEO OF DEKHO NORTHEAST

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button