बीटीएडी में शिक्षा व्यवस्था हुई बद से बदतर
कोकराझाड़
बीटीएडी में शिक्षा व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है| इसका अंदाजा इस बार मैट्रिक और हायर सेकेंडरी की परीक्षा परिणामों से लगाया जा सकता है| इस बार राज्य में बीटीएडी के चारों जिलों का न्यूनतम परिणाम आया है|
इसके लिए राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में बीटीएडी में शिक्षा विभाग द्वारा लागू की गई शिक्षा नीति के स्तर में गिरावट को जिम्मेदार माना जा रहा है| स्कूलों में शिक्षकों की कमी को इसकी मुख्य वजह बताई जा रही है| बीटीएडी के सरकारी स्कूलों में बोर्ड की परीक्षाओं में जिन विद्यार्थियों को बैठाया जाता है उनका सही रूप से आकलन किए बिना बैठाया जाता है| इसी कारण परिणाम बेहतर नहीं होते|
जो विद्यार्थी दो विषयों में फैल हो जाते है उन्हें बोर्ड की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिलती है| लेकिन बीटीएडी के स्कूलों में यह नियम लागू नहीं होता| यहाँ पर विद्यार्थियों को मात्र 25 फीसदी अंक ही लाने होते है| यानी 600 अंक की परीक्षा में मात्र 150 अंक लाने से विद्यार्थियों को बोर्ड की परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल जाती है| परिणामस्वरुप अधिकतर विद्यार्थी फैल हो जाते है|
बीटीसी प्रमुख हग्रामा मोहिलारी द्वारा शुरू से ही दावा किया जाता रहा है कि शिक्षा को उनकी सरकार प्राथमिकता देगी| लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो पाया| इस संबंध में शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि हम इसमें सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं| जबकि आज तक कोई कोशिश नहीं की गई है|
इसके अलावा शिक्षा मंत्री के तमाम दावों के बावजूद आज तक बीटीएडी में शिक्षकों का अभाव है| जो शिक्षक है वे भी एनआरसी के काम में व्यस्त हैं| ऐसी स्थिति में शिक्षा का विकास कैसे संभव हो सकता है?
अगर बीटीएडी में सही मायने में विकास और शांति लानी है तो शिक्षा व्यवस्था को अधिक सुदृढ़ बनाना होगा, क्योंकि शिक्षा ही एक अच्छे और स्वस्थ समाज का गठन करती है|